इस्लामी केलेंडर


1 नव॰ 2014

मुहर्रम शरीफ

मुहर्रम शरीफ
इस्लामी यानी हिजरी सन्का पहला महीना मुहर्रम है।
हिजरी सन्का आगाज इसी महीने से होता है। इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है।
अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) ने इस मास को अल्लाह का महीना कहा है।
साथ ही इस मास में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है।
मुख्तलिफ हदीसों, यानी हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) के
कौल (कथन) अमल (कर्म) से मुहर्रम की पवित्रता इसकी अहमियत का पता चलता है।
ऐसे ही हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) ने एक बार मुहर्रम का जिक्र करते हुए
इसे अल्लाह का महीना कहा। इसे जिन चार पवित्र महीनों में रखा गया है,
उनमें से दो महीने मुहर्रम से पहले आते हैं। यह दो मास हैं जीकादा जिलहिज्ज।
एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) ने कहा कि
रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं,
जो अल्लाह के महीने यानी मुहर्रम में रखे जाते हैं।
यह कहते समय नबी--करीम हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) ने एक बात और जोड़ी कि
जिस तरह अनिवार्य नमाजों के बाद सबसे अहम नमाज तहज्जुद की है,
उसी तरह रमजान के रोजों के बाद सबसे उत्तम रोजे मुहर्रम के हैं।
इस्लामी यानी हिजरी सन्का पहला महीना मुहर्रम है।
हिजरी सन्का आगाज इसी महीने से होता है।
इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है।
इत्तिफाक की बात है कि आज मुहर्रम का यह पहलू आमजन की नजरों से ओझल है,
और इस माह में अल्लाह की इबादत करनी चाहीये जबकि पैगंबरे-इस्लाम (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) ने
इस माह में खूब रोजे रखे और अपने साथियों का ध्यान भी इस तरफ आकर्षित किया।
इस बारे में कई प्रामाणिक हदीसें मौजूद हैं।
मुहर्रम की 9 तारीख को जाने वाली इबादतों का भी बड़ा सवाब बताया गया है।
हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) के साथी इब्ने अब्बास के मुताबिक
हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम)  ने कहा कि
जिसने मुहर्रम की 9 तारीख का रोजा रखा, उसके दो साल के गुनाह माफ हो जाते हैं
तथा मुहर्रम के एक रोजे का सवाब (फल) 30 रोजों के बराबर मिलता है।
गोया यह कि मुहर्रम के महीने में खूब रोजे रखे जाने चाहिए।
यह रोजे अनिवार्य यानी जरूरी नहीं हैं, लेकिन मुहर्रम के रोजों का बहुत सवाब है।
अलबत्ता यह जरूर कहा जाता है कि इस दिन अल्लाह के नबी
हजरत नूह (अलयहिस्सलाम) की किश्ती को किनारा मिला था।
इसके साथ ही आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी,
जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है।
इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) के नवासे (नाती)
हजरत इमाम हुसैन (रदीयल्लाहूअन्हु) को शहीद कर दिया गया था।
कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी निंदनीय है।
बुजुर्ग कहते हैं कि इसे याद करते हुए भी हमें हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) का तरीका अपनाना चाहिए।
जबकि आज आमजन को दीन की जानकारी के बराबर है।
अल्लाह के रसूल वाले तरीकोंसे लोग वाकिफ नहीं हैं।
ऐसे में जरूरत है हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) की बताई बातों पर गौर करने
और उन पर सही ढंग से अमल करने की जरुरत हे

करबला की जंग
करबला, इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा।
10 अक्टूबर 680 (10 मुहर्रम 61 हिजरी) को समाप्त हुई।
इसमें एक तरफ 72 और दूसरी तरफ 40,000 की सेना थी।
हजरत इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू अन्हु) की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली थे।
उधर यजीदी फौज की कमान उमर इब्ने सअद के हाथों में थी।
हज़रत इमाम हुसैन इब्ने अली इब्ने अबी तालिब हजरत अली (रदीयल्लाहू अन्हु)
और पैगंबर हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) की बेटी
फातिमा (रदीयल्लाहू अन्हा) के पुत्र हैं।
जन्म : 8 जनवरी 626 ईस्वी (मदीना, सऊदी अरब) 3 शाबान 4 हिजरी
शहादत : 10 अक्टूबर 680 . (करबला, इराक) 10 मुहर्रम 61 हिजरी।
--------------------------------
ज्वाइन व्हाट्सएप्प ग्रुप :- डेफिनेशन ऑफ़ रिलिजियन +919173506392

-----------------------------------------------------------------------------------------------------



कर्बला की कहानी और मकसद ए क़ुरबानी ज्ञान कुमार

दास्ताने कर्बला मैं उन्होंने सबसे पहले इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) के बारे मैं बताया फिर उनकी जंग यजीद से क्यों हुई और कैसे कैसे यजीद ने ज़ुल्म धाये इसका ज़िक्र बखूबी किया है. उन्सको पढने के बाद कोई भी शख्स जो इंसान का दिल रखता है उसकी आँखों मैं आंसू अवश्य आ जाएंगे.

मैं उनकी किताब के एक हिस्से मकसद ए क़ुरबानी को पेश कर रहा हूँ . हजरत इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) ने अपने व अपने इकहत्तर साथियों ,रिश्तेदारों की अज़ीम , बेमिसाल अलौकिक व अदभुद क़ुरबानी पेश करके दुनिया को पैगाम दिया है की:ए दुनिया के हक परस्तों कभी भी बातिल के आगे सर ख़म ना करना (शीश ना झुकाना ), बातिल चाहे कितना भी ताक़तवर और ज़ालिम क्यों ना हो.

दुनिया काएम होने से लेकर हर युग मैं हमेशा न्याय -अन्याय, सत्य -असत्य ,नेकी-बड़ी ,अच्छाई-बुराई एव हक और बातिल के दरमियान जंग होतो रही है. जिसमें जीत हमेशा न्याय, सत्य ,नेकी, अच्छाई ,एवं हक की ही हुई है. चाहे उसे ताक़त से जीता गया हो या कुर्बानियां दी गयी हों.जिसके लिए इतिहास गवाह है.

हजरत इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) ने कर्बला मैं यजीद जैसे बातिल परस्त (बुराई की राह पे चलने वाला ) फ़ासिक़ को पूरी तरह से बेनकाब करके उसका घिनौना चरित्र दुनिया के सामने दिखा दिया. यजीद ने सोंचा था की अपनी ताक़त व दौलत के ज़ोर से तमाम ज़ुल्म ओ सितम ध कर सत्य को झुकने पे मजबूर कर देगा.

लेकिन ऐसा वो कर ना सका और इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) ने यजीद के हाथों खुद को बेचने (बैय्यत) से इनकार कर दिया. इस इनकार के बदले यजीद ने कर्बला मैं इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) के ७२ साथियों और रिश्तेदारों, बच्चों को , भूखा , प्यासा शहीद करवा दिया. यजीद के ज़ुल्म की कहानी सुन के आज भी कोई शरीफुल नफ्स अपने बच्चे का नाम यजीद नहीं रखता जबकि नाम ए हुसैन आज हर दुसरे मुसलमान का हुआ करता है.

अब तक हर युग मैं धर्म -अधर्म के युद्ध हुए हैं. 
कर्बला भी धर्म और अधर्म के लिए घटित हुई थी जिसमें यजीद जैसा अधर्मी शासक ने महान धर्म परायण व पवित्र शक्सियत का क़त्ल कर के दुनिया के सामने अपनी हठधर्मिता एवं अविजेता का प्रदर्शन करना चाहता था.

आज १४०० साल बाद भी इमाम हुसैन रदीयल्लाहू तआला अन्हु की इस क़ुरबानी जो मुहर्रम की दस तारिख सन ६१ हिजरी मैं हुई थी सभी धर्मो के लोग याद करते हैं.

दुनिया के किसी भी दीं धर्म की बुनियाद सत्य -न्याय एवं मानवता पर ही आधारित है. सभी धर्मो का सन्देश है की दुनिया मैं अमन और शांति काएम रखी जाए और सभी को जीने के सामान अधिकार व अवसर प्रदान किए जाएं, जिस से इंसानी वजूद दुनिया मैं हमेशा काएम रहे तथा आपस मैं भाईचारा बरक़रार रहे.

इसी मूल मंत्र के कारण इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) ने पना सब कुछ कर्बला मैं लुटा दिया तथा अपना भरा घर अपने नाते रिश्तेदारों समेत खुद को कुर्बान कर दिया.

आएये हम सभी मिलकर इस ईश्वरीय पैगाम पे ग़ौर ओ फ़िक्र करें तथा कर्बला की घटना से सीख लें जिससे दुनिया मैं फैल रहे ज़ुल्म ओ सितम ,दुराचार,अनाचार,नाते रिश्तों मैं हो रही गिरावट ,बेगुनाहों की हो रही हत्याओं एवं मानवता पे हो रहे हमलों को रोका जा सके. अवन दुनिया को आतंकवाद के चंगुल से बचने का संकल्प लें.

यही है हजरत इमाम हुसैन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) से सच्ची मुहब्बत एवं उनके पैगाम व क़ुरबानी में हिस्सेदारी एवं अल्लाह (इश्वर) के बताए हुए अहकाम व आदेशों का पालना.

--------------------------------------

 
















,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 इस्लाम की ऐसी ही प्यारी - प्यारी बातें जानने के लिए 
इस वेबसाइट से कनेक्ट रहिये.जझाकल्लाह

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

आपके मशवरों का हमें बेसब्री से इंतज़ार है.बराए करम अपना मशवरा दीजिये

 
Template by YakubRaza_A from Madina Doaago by YakubRaza_A | website - Islamic Photo | Deenkibaten |