शिर्फ़ एक माह में हाफ़िज़े कुरआन

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब का बयान है के एक रोज़ आला हजरत इमामे अहले सुन्नत मौलाना शाह अहमद रज़ा खान रह्मतुल्लाही तआला अलय्ही ने इरशाद फ़रमाया की बाज़ ना-वाकिफ हजरात मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते थे,हालांके मैं इसका अहल नहीं हूँ, सय्यद अय्यूब अली साहब फरमाते हैं की आला हजरत ने उसी रोज़ से दौर शुरू कर दिया,जिसका वक्त गालिबन ईशा का वुजू फरमाने के बाद से जमाअत काइम होने तक मखसूस था, रोजाना एक पारह याद फरमा लिया करते थे, यहाँ तक की तीसवें रोज़ तीसवां पारह याद फरमा लिया, एक मौके पर फ़रमाया की मैंने कलामे पाक बिलतरतीब ब-कोशिश याद कर लिया और यह इसलिए की उन बनद्गाने खुदा का (जो मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते हैं) कहना गलत साबित न हों. (ब-हवाला:-हयाते आला हज़रत)
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