कलामुश्शैख शैखुल इस्लाम - इदे मिलादुन्नबी صلى الله عليه وسلم
मेरे मुर्शिदे कामिल, ताजदारे अहले सुन्नत, पेशवा-ऐ-दिनों मिल्लत, शहंशाहे खिताबत, अमीरुल वाईजिन, रईसुल मुहक्किकिन, सय्यद मुहम्मद मदनी अशरफीयुल जिलानी मद्ज़िल्लाहू नुरानी इरशाद फरमाते हैं .........
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पशेमाँ नहों शर्मशारो से कहदो
नबी صلى الله عليه وسلم आ गए गम के मारो से कहदो
मुझे भा गए हैं खजूरों के झुरमुट
जरा खुल्द (जन्नत) के सब्ज़ाजारों से कहदो
मुहम्मद صلى الله عليه وسلم चले हैं सूए अर्शे आज़म
अदब से रहें चाँद तारों से कहदो
ज़माने के अंधों को अहमद की मंजिल
बतादें ज़रा तिस पारों से कहदो
मुझे ख्वाब ही में नज़ारा करादें
मदीने के दिलकश नजारों से कहदो
ज़रा छेड़ दे नग्माए नाते अहमद صلى الله عليه وسلم
मेरी ज़िन्दगी के सितारों से कहदो
है जाने गुलिश्तां की आमद चमन में
हो जारूबक्स नौ बहारों से कहदो
यही तो है "अख्तर" तेरी जिंदगानी
नहो सर्द दिल के शरारों से कहदो.
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इस्लाम की ऐसी ही प्यारी -
प्यारी बातें जानने के लिए
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वेबसाइट से कनेक्ट रहिये. जझाकल्लाह
www.islamikhajana.tk
आलमे इस्लाम को नाचीज़ "याकूबरजा" की और से
इदे मिलादुन्नबी صلى الله عليه وسلم मुबारक हो.
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" अमीरे अहले सुन्नत मौलाना इल्यास अत्तार कादरी मदज़िल्ल्हू नुरानी का पयगाम"
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