इस्लामी केलेंडर


6 नव॰ 2015

काबा शरीफ के मुताबिक चलें दुनियाभर की घड़ियाँ.

काबा शरीफ के मुताबिक चले दुनिया भर की घडियां



हैरत मत कीजिए,
सच्चाई यही है कि दुनिया में वक्त का निर्धारण 
काबा शरीफ को केन्द्रित करके किया जाना चाहिए 
क्योंकि काबा दुनिया के बीचों बीच है। 
इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर यह साबित कर चुका है। 
सेन्टर का दावा है कि ग्रीनविचमीन टाइम में खामियां हैं 
दुनिया में वक्त का निर्धारण ग्रीनविच रेखा के बजाय काबा शरीफ को केन्दित रखकर किया जाना चाहिए क्योंकि काबा शरीफ दुनिया के एकदम बीच में है।
विभिन्न शोध इस बात को साबित कर चुके हैं। 
वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि ग्रीनविच मीन टाइम में खामी है जबकि काबा शरीफ के मुताबिक वक्त का निर्धारण एकदम सटीक बैठता है। 
ग्रीनवीच मानक समय को लेकर दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है और और कोशिश की जा रही है कि ग्रीनविचमीन टाइम पर फिर से विचार किया जाए। ग्रीनविचमीन टाइम को चुनौति देकर काबा शरीफ समय-निर्धारण का सही केन्द्र होने का दावा किया है इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने वैज्ञानिक तरीके से इसे सिध्द कर दिया है और यह सच्चाई दुनिया के सामने लाने की मुहिम में जुटा है। 
इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के डॉ. अब्द अल बासेत सैयद इस संबंध में कहते हैं कि जब अंग्रेजों के शासन में सूर्यास्त नहीं हुआ करता था, तब ग्रीनविच टाइम को मानक समय बनाकर पूरी दुनिया पर थोप दिया गया। 
डॉ. अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का शरीफ  में चुम्बकीय क्षमता शून्य है। 
 डॉ.सैयद के अनुसार जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता वाले स्थान को आधार मानकर टाइम का निर्धारण ही वैज्ञानिक रूप से सही है। जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता दोनों ध्रुवों के बीच में यानी दुनिया के केन्द्र में होगी। अगर काबा शरीफ में कंपास रखा जाता है तो कंपास की सुई नहीं हिलेगी क्योंकि वहां से उत्तरी और दक्षिणी गोलाध्र्द बराबर दूरी पर है। डॉ.अब्द अल बासेत कहते हैं कि चांद पर जाने वाले नील आर्मस्टांग भी मान चुके हैं कि काबाशरीफ  दुनिया के बीचोंबीच है। 
जब अंतरिक्ष से पथ्वी के फोटो लिए गए थे तो मालूम हुआ कि काबा शरीफ  से खास किस्म की अनन्त किरणें निकल रही हैं। 
 डॉ. अब्द अलबासेत सैयद ने एक टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में इन सब बातों का खुलासा किया। 
उन्होने बताया कि ग्रीनविचमीन टाइम के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी गोलाध्र्द के बीच साढे आठ मिनट का फर्क पड जाता है,जो इस टाइम-निर्धारण की खामी को उजागर करता है। 
टाइम निर्धारण की इस गडबड से हवाई यातायात में व्यवधान पैदा हो जाता है। 
यही वजह है कि हवाई यातायात के दौरान इन साढे आठ मिनटों को एडजेस्ट करके हवाई यातायात का संचालन किया जाता है। अगर काबा शरीफ को केन्द्रित रखकर समय तय हो तो साढे आठ मिनट वाली यह परेशानी भी दूर हो जाएगी। 
 डॉ. सैयद के मुताबिक मक्का में प्रथ्वी की चुम्बकीय क्षमता जीरो डिग्री होने से वहां जाने वाले लोगों को सेहत के हिसाब से भी काफी फायदा होता है क्योंकि उन्हें वहां एक खास तरह की उर्जा हासिल होती है। 
जब कोई मक्का शरीफ में होता है तो उस व्यक्ति के रक्त की आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता दुनिया के अन्य स्थानों से कहीं अधिक होती है। मक्का शरीफ  में आपको अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं पडती। यही वजह है कि अच्छी तरह नहीं चल पाने वाला बुजुर्ग व्यक्ति भी हज के दौरान जबर्दस्त भीड होने के बावजूद काबा का तवाफ उत्साहित होकर कर लेता है। वहां लोग उर्जा से भरे रहते हैं क्योंकि वे उस खास मुकाम पर होते हैं जहां पृथ्वी का चुम्बकीय बल जीरो है। 
वे आगे बताते हैं-मानव सरंचना के बारे में इल्म रखने वाला व्यक्ति जानता है कि शरीर के सभी प्रवाह दाईं ओर है। जब कोई व्यक्ति काबा शरीफ का तवाफ करता है,जो घडी की विपरीत दिशा में यानी दायीं तरफ से बाईं तरफ होता है, तो वह उर्जा से भरपूर हो जाता है। तवाफ से शरीर के दाईं ओर के प्रवाह को अधिक गति मिलती है और उर्जा हासिल होती है।  
इन सब बातों से जाहिर होता है कि 
अल्लाह तबारक व तआला ने अपने घर को कितना बुलंद मुकाम अता किया है।



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