इस्लामी केलेंडर


9 जुल॰ 2013

मुंशी प्रेमचंद का इस्लाम के बारे में नज़रिया

मशहूर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का इस्लाम के बारे में नज़रिया



मुंशी प्रेमचंद (प्रसिद्ध साहित्यकार)

‘‘...जहाँ तक हम जानते हैं, किसी धर्म ने न्याय को इतनी महानता नहीं दी जितनी इस्लाम ने। ...
इस्लाम की बुनियाद न्याय पर रखी गई है। 
वहाँ राजा और रंक, अमीर और ग़रीब, बादशाह और फ़क़ीर के लिए ‘केवल एक’ न्याय है। किसी के साथ रियायत नहीं किसी का पक्षपात नहीं। 
ऐसी सैकड़ों रिवायतें पेश की जा सकती है जहाँ बेकसों ने बड़े-बड़े बलशाली आधिकारियों के मुक़ाबले में न्याय के बल से विजय पाई है। 
ऐसी मिसालों की भी कमी नहीं जहाँ बादशाहों ने अपने राजकुमार, 
अपनी बेगम, यहाँ तक कि स्वयं अपने तक को न्याय की वेदी पर होम कर दिया है। संसार की किसी सभ्य से सभ्य जाति की न्याय-नीति की, इस्लामी न्याय-नीति से तुलना कीजिए, 
आप इस्लाम का पल्ला झुका हुआ पाएँगे...।’’ 
‘‘...जिन दिनों इस्लाम का झंडा कटक से लेकर डेन्युष तक और तुर्किस्तान से लेकर स्पेन तक फ़हराता था मुसलमान बादशाहों की धार्मिक उदारता इतिहास में अपना सानी (समकक्ष) नहीं रखती थी। 
बड़े से बड़े राज्यपदों पर ग़ैर-मुस्लिमों को नियुक्त करना तो साधारण बात थी, महाविद्यालयों के कुलपति तक ईसाई और यहूदी होते थे...।’’ ‘‘...यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इस (समता) के विषय में इस्लाम ने अन्य सभी सभ्यताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है। 
वे सिद्धांत जिनका श्रेय अब कार्ल मार्क्स और रूसो को दिया जा रहा है वास्तव में अरब के मरुस्थल में प्रसूत हुए थे और उनके जन्मदाता अरब के  वह उम्मी हैं जिनका नाम मुहम्मद (ﷺ) है। 
मुहम्मद (ﷺ) के सिवाय संसार में और कौन धर्म प्रणेता हुआ है जिसने ख़ुदा के सिवाय किसी मनुष्य के सामने 
सिर झुकाना गुनाह ठहराया है...?’’
 ‘‘...कोमल वर्ग के साथ तो इस्लाम ने जो सलूक किए हैं उनको देखते हुए अन्य समाजों का व्यवहार पाशविक जान पड़ता है। 
किस समाज में स्त्रियों का जायदाद पर इतना हक़ माना गया है जितना इस्लाम में? ...
हमारे विचार में वही सभ्यता श्रेष्ठ होने का दावा कर सकती है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक उठने का अवसर दे। 
इस लिहाज़ से भी इस्लामी सभ्यता को कोई दूषित नहीं ठहरा सकता।’’ ‘‘...हज़रत (मुहम्मद ﷺ) ने फ़रमाया — कोई मनुष्य उस वक़्त तक मोमिन (सच्चा मुस्लिम) नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई-बन्दों के लिए भी वही न चाहे जितना वह अपने लिए चाहता है। ...
जो प्राणी दूसरों का उपकार नहीं करता ख़ुदा उससे ख़ुश नहीं होता। 
उनका यह कथन सोने के अक्षरों में लिखे जाने योग्य है—
‘‘ईश्वर की समस्त सृष्टि उसका परिवार है वही प्राणी ईश्वर का (सच्चा) भक्त है जो ख़ुदा के बन्दों के साथ नेकी करता है।’’ ...
अगर तुम्हें ख़ुदा की बन्दगी करनी है तो पहले उसके बन्दों से मुहब्बत करो।’’ ‘‘...सूद (ब्याज) की पद्धति ने संसार में जितने अनर्थ किए हैं और कर रही है वह किसी से छिपे नहीं है। 
इस्लाम वह अकेला धर्म है जिसने सूद को हराम (अवैध) ठहराया है...।’’ —‘इस्लामी सभ्यता’      
साप्ताहिक प्रताप विशेषांक दिसम्बर 1925 
 किताब ‘इस्लामी सभ्यता’ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक  करें 



,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 इस्लाम की ऐसी ही प्यारी - प्यारी बातें जानने के लिए 
इस वेबसाइट से कनेक्ट रहिये.जझाकल्लाह

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

आपके मशवरों का हमें बेसब्री से इंतज़ार है.बराए करम अपना मशवरा दीजिये

 
Template by YakubRaza_A from Madina Doaago by YakubRaza_A | website - Islamic Photo | Deenkibaten |