रज्जबुल मुरज्जब की २२ (या १५) तारीख को
मुसलमान हजरते सय्यिदुना इमाम जाफर सादिक
رضي الله عنه
के इसाले सवाब के लिए खीर-पुरियां पकाते हैं,
जिन्हें 'कुंडे शरीफ' कहा जाता है
इसके नाजाइज़ या गुनाह होने की कोई वजह नहीं
(यानी यह सब जाइज व सवाब का काम है)
हाँ !!!
बअज औरतें कुंडे की नियाज़ के मौके पर
"दस बीबियों की कहानी"
"लकड़हारे की कहानी"
वगैरह पढ़ती हैं,यह जाइज नहीं क्यूंकि यह दोनों और
"जनाबे सय्यदाह की कहानी"("चटपट बीबी की कहानी")
सब मन घडत कहानियां है,
इनको न पढ़ा करें.
इसके बजाऐ सुरह यासीन शरीफ पढ़ लिया करें की दस कुरआन शरीफ पढने का सवाब मिलेगा,
यह भी याद रहें की
कुंडे ही मे खीर खाना, खिलाना जरुरी नहीं,
दुसरे बर्तन मेभी खा और खिला सकते हैं,
और इसको घर से बाहर भी ले जा सकते हैं.
(ब हवाला:- कफ़न की वापसी,सफा:१५)
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इसे पढ़ कर अपने इस्लामी भाइयों को शेयर करें. ताकि लोगों की गलत फहमियां दूर हों,और इल्म मे ज्यादती हों
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